मणि कौल की फिल्म ‘उसकी रोटी’ सिनेमाग्राफी की कविता बन गई है। इस फिल्म में शब्दों के स्थान पर ध्वनियां हैं, जो हमारे आसपास गूंजती हैं, लेकिन हम उन्हें अनसुना कर देते हैं। मणि कौल ने कथा को इन ध्वनियों से मायने दिए हैं और ‘उसकी रोटी’ उनकी कविता बन गई है।
इस फिल्म में सुच्चा सिंह और उसकी पत्नी बालो के जीवन को केंद्र में रखा गया है। यह सिनेमा दर्शकों को ध्वनियों को समझने का अभ्यास करवाती है और समय के साथ रहना सिखाती है।
मणि कौल की फिल्म ‘उसकी रोटी’ सिनेमाग्राफी की कविता बन गई है।
मणि कौल की फिल्म ने सिनेमा को एक नया रंग दिया है। उसकी रोटी कहानी के साथ-साथ, इस फिल्म ने अद्वितीय साहित्य रचना के रूप में भी प्रशंसा पाई है। यह एक कविता की तरह है, जिसे देखने या सुनने के बाद दृश्य आपके अंदर उबलते हैं।
इस फिल्म में शब्दों की बजाय ध्वनियां हैं, जो मन के भावों को व्यक्त करती हैं। मणि कौल इन ध्वनियों के माध्यम से कथा को मायने देते हैं, और उसकी रोटी मोहन राकेश की कहानी से आगे पर्दे पर मणि कौल की कविता बन जाती है।”
मणि कौल सिनेमा जगत में अपनी अलग पहचान रखते हैं। इन्होंने अपनी फिल्म ‘उसकी रोटी’ को मात्र 24 वर्ष की उम्र में बनाया और सिनेमा को नई दिशा देने की शुरुआत की। इस फिल्म की कहानी सुच्चा सिंह और उसकी पत्नी बालो के जीवन पर आधारित है।
मणि कौल ने श्वेत-श्याम को पूरी विविधता के साथ रचना की है। इस समय में, जब शोर ही अभिव्यक्ति का प्रमुख तत्व है, इस फिल्म ने सुशांतता और ध्वनियों के जोड़ को आगे बढ़ाया है। यह फिल्म आपको रुकने पर मजबूर करती है, एक संवाद के आने की प्रतीक्षा उत्पन्न करती है। जब जीवन की गति तेज हो और अनचाहे ध्वनियां उठ जाएं, तब ‘उसकी रोटी’ जैसी फिल्म हमें ध्वनियों को समझने का अभ्यास कराती है। यह हमें सिखाती है कि शब्द का अस्तित्व मौन को तोड़ने पर ही होता है।