सीसीई (CCE) का फुल फोर्म हैं सतत व व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation)।
सतत एवं समग्र मूल्यांकन प्रणाली यानि सीसीई को सीबीएसई ने स्टूडेंट्स में परीक्षा के तनाव को कम करने के लिए लागू किया था।
इस सिस्टम के तहत छात्रों के अंक ग्रेड से बदल दिए गए। जिनमें शैक्षिक गतिविधियों के साथ कॅरीकुलर गतिविधि पर ध्यान दिया जाता है। प्रत्येक सेमेस्टर में दो फार्मेटिव और एक समेटिव असेसमेंट होता है।
इसके अलावा लिखित परीक्षा भी ली जाती है। जिसका पेपर स्कूलों द्वारा बनाया जाता है। बच्चों के पास यह विकल्प है कि वे चुनाव कर सकें कि वह बोर्ड की परीक्षा में बैठेंगे या स्कूल की।
सीसीई पद्धति के तहत, एक छात्र को विशाल सीबीएसई पाठ्यक्रम का अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि पहले शब्द में जो कवर किया गया है वह दूसरे या अंतिम शब्द के दौरान दोहराया नहीं जाएगा, जो भी हो।
तो, एक तरह से यह अत्यधिक दबाव को कम करने का एक तरीका है, लेकिन बहुत सारे छात्रों और शिक्षकों का मानना है कि यह अधिक तनाव जोड़ रहा है। सीसीई (CCE) का उद्देश्य छात्रों की रचनात्मक प्रतिभा को आगे लाना है।
छात्र और शिक्षक अगर शुरुआत में इन कार्यों की रूपरेखा तैयार कर लेते हैं, तो यह अधिक फलदायक और कम परिश्रम वाला होगा।
सतत समग्र मूल्यांकन (CCE) के दो स्वरूप निर्धारित किए गए हैं जिसमें पहला रचनात्मक ज्ञान परखने पर आधारित (फार्मेटिव) है जबकि दूसरे के माध्यम से व्यवहारिक ज्ञान (समेटिव) को परखा जाएगा। रचनात्मक ज्ञान की परख के लिए 40 प्रतिशत अंक निर्धारित किए गए हैं जबकि व्यवहारिक ज्ञान की परख के लिए 60 प्रतिशत अंक रखे गए हैं।
बोर्ड ने अंक के स्थान पर ग्रेड की व्यवस्था की है। ग्रेड को ए1, ए2, ए3, बी1, बी2, सी1, सी2, सी3 और ई वर्ग में बाँटा गया है।
इसके तहत 95 से 100 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को ए1 ग्रेड, 90 से 94 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वालों को ए2, 80 से 89 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले ए3, 70 से 79 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले बी1, 60 से 69 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले बी2, 50 से 59 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले सी1, 40 से 49 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले सी2, 33 से 39 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले सी3 और 32 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करने वालों छात्रों को ई ग्रेड प्रदान किया जाएगा।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन बच्चों के वृद्धि और विकास के समस्त क्षेत्रों का सतत् एवं नियमित आकलन है। जिसके द्वारा विभिन्न विधियों एवं उपकरणों के माध्यम से बच्चों का आकलन किया जाता है।
इसमें बच्चे का आकलन सतत् एवं नियमित रूप से किया जाता है जो पूरे वर्ष औपचारिक एवं अनौपचारिक रूप से चलता रहता है।
इसमें न सिर्फ विषय आधारित बल्कि सहषैक्षिक क्रियाकलापों का भी सतत् आकलन किया जाता है, जिससे बच्चों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन के साथ-साथ यह भी ज्ञात होता है कि बच्चे ने क्या सीखा एवं कहाँ उसके साथ कार्य करने की आवश्यकता है।
मूल्यांकन, कक्षा अधिगम प्रक्रिया के साथ-साथ बच्चों के सीखने की गति, अवधारणा, ज्ञान, अभिवृत्ति, कौशल, व्यवहार, अनुभव, आदि को जानने के लिए योजनाबद्ध रूप से साक्ष्यों का संकलन, विश्लेषण, व्याख्या एवं सुझाव देने की प्रक्रिया है।
साक्ष्यों का यह संकलन कक्षा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के समय शिक्षकों द्वारा उपयोग में लाए गए उपकरणों के माध्यम से किया जाता है।
मूल्यांकन-प्रक्रिया जितनी बेहतर होगी, विकास की गति भी उतनी ही बेहतर होगी क्यांेकि मूल्यांकन के आधार पर आवश्यक सुधार कर उपलब्धि स्तर को बढ़ाया जा सकता है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन परीक्षा का पर्याय नहीं है और न ही बच्चों का नियमित परीक्षण है।
इसका आशय बच्चों को ग्रेड या अंक देना, फेल-पास का सटिर्फिकेट देना भी नहीं है। बच्चों को नाम देना जैसे धीमी गति से सीखने वाला, कमज़ोर, होशियार, समस्या मूलक विद्यार्थी आदि।
इसके अंतर्गत प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर पढ़ाए जाने वाले विषयों का मूल्यांकन किया जाता है जो बच्चों के मानसिक विकास में मदद करते हैं। इन क्षेत्रों का मूल्यांकन फाॅरमेटिव एवं समेटिव दोनों प्रकार से किया जाता है।
क्या होगा फायदा
– इससे छात्र सिर्फ किताबों को रटेगा नहीं बल्कि विषयों के कांसेप्ट को भी बेहतर तरीके से समझ सकेगा।
– छात्रों को इस बात का मौका देगा कि वह ये जान सकें कि उनका कमजोर पक्ष क्या है और मजबूत पक्ष क्या।
– ग्यारहवीं कक्षा में संकाय और विषय चुनने और करियर का चुनाव करने में सहायक सबित होगा।
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